‘इक ओंकार सतनाम’ का संदेश देने वाले सिखों के पहले गुरु श्री गुरु नानक देव जी को सिख पंथ का संस्थापक माना जाता है। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों का विरोध और भाईचारे को बढ़ावा देने का संदेश देकर समाज को एक नई सोच और दिशा दी थी। गुरु जी ने ही समाज में व्याप्त जात-पात, ऊंच-नीच खत्म करने के लिए सबसे पहले लंगर का प्रारंभ किया था। यूं तो उनका जन्म 15 अप्रैल, 1469 को श्री ननकाना साहिब (पाकिस्तान) में हुआ था, लेकिन उनकी जयंती हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रकाश पर्व के रूप में मनाई जाती है। इस दिन गुरवाणी के जरिये उनकी शिक्षाओं और उपदेशों को लोगों तक पहुंचाया जाता है।
सिख धर्म के संस्थापक गुरू नानक देव जी की जयंती इस वर्ष विश्वभर में धूमधाम से मनाई जा रही है। इस बार श्री गुरुनानक देव जी की 550वां प्रकाश पर्व है। करतारपुर साहिब के लिए सीमा के द्वार खुलने से भी संगत उत्साहित है। यह सिख समुदाय का सबसे बड़ा पर्व है। यह पर्व लोगों को साथ में रहने, इकट्ठे खाने और मेहनत से कमाई करने का संदेश देता है।
प्रकाश पर्व का अर्थ है- अपने अंदर की बुराइयां दूर कर खुद को सत्य, ईमानदारी और सेवाभाव से प्रकाशित करना। गुरु नानक देव जी के अनुयायी उन्हें बाबा नानक और नानकशाह भी कहते हैं। गुरु नानक जी ने अपना पूरा जीवन मानवता की सेवा में लगा दिया। उन्होंने सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि अफगानिस्तान, ईरान और अरब देशों में भी जाकर उपदेश दिए।
इसलिए मनाते हैं प्रकाशपर्व
गुरुपर्व या प्रकाशपर्व श्री गुरु नानक देव जी के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 को राय भोई की तलवंडी में हुआ था। यह स्थान अब गुरु नानक देव जी के नाम पर श्री ननकाना साहिब (पाकिस्तान) के रूप में जाना जाता है। यहां बहुत ही प्रसिद्ध गुरुद्वारा श्री ननकाना साहिब भी है। इसे सिखों का प्रमुख धार्मिक स्थल माना जाता है। इसका निर्णाण महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था।
ऐसे मनाते हैं पर्व
प्रकाशपर्व के दिन जहां गुरुद्वारों में भव्य सजावट की जाती है, वहीं गुरु का प्रसाद लंगर भी बांटा जाता है। एक दिन पहले से सिख समुदाय के लोग सुबह वाहेगुरु वाहेगुरु जपते हुए प्रभातफेरी निकालते हैं। इसमें सभी गुरुबाणी का गायन करते हुए चलते हैं। शहरों में नगर कीर्तन निकाले जाते हैं। सभी जत्थों का जगह-जगह पर हार-फूल से स्वागत किया जाता है। शाम को दीवान सजाकर शबद कीर्तन किया जाता है। गुरुद्वारों में सुबह से ही धार्मिक कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं, जो देर रात तक चलते हैं।
इसके अलावा विभिन्न आयोजनों में गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को याद किया जाता है। कई सिख परिवार इस अवसर पर अखंड पाठ करवाते हैं। यह अखंड पाठ लगातार 48 घंटे चलता है। इसमें सिख धर्मगुरु पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब के महत्वपूर्ण अध्यायों का पाठ करते हैं।
इस बार इसलिए विशेष
इस बार यह पर्व 12 नवंबर (कार्तिक पूर्णिमा) को मनाया जा रहा है। दो कारणों से इसका विशेष महत्व है। पहला- यह श्री गुरु नानक देव जी का 550वां प्रकाशपर्व है। दूसरा-बंटवारे के 72 वर्ष बाद पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा करतारपुर साहिब को करतारपुर कॉरिडोर के माध्यम से भारतीय सिखों के लिए खोला गया है। गुरुद्वारा करतारपुर ही वह स्थान है जहां गुरु नानक जी ने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष बिताए थे।
गुरु नानक देव जी के जीवन से जुड़े अहम पहलू
- गुरू नानक देव जी के पिता का नाम मेहता कालू जी था, वहीं माता का नाम तृप्ता देवी था। नानक देव जी की एक बहन थीं, जिनका नाम नानकी था।
- नानक देव जी बचपन से ही धीर-गंभीर स्वभाव के थे। उन्होंने बाल्यकाल से ही रूढ़िवादी सोच का विरोध किया।
- एक बार उनके पिता जी ने उनको 20 रुपये देकर बाजार भेजा और बोले कि खरा सौदा लेकर आना। उन्होंने उन रुपयों से भूखे साधुओं को भोजन करा दिया। लौटकर उन्होंने पिता जी से कहा कि वे खरा सौदा कर आए हैं।
- गुरु नानक देव जी की पत्नी का नाम सुलक्षिनी था, वह बटाला की रहने वाली थीं। उनके दो बेटे थे, एक बेटे का नाम श्रीचंद और दूसरे बेटे का नाम लक्ष्मीदास था।
- नानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की थी, वे सिखों के प्रथम गुरू हैं। वे अंधविश्वास और आडंबरों के सख्त विरोधी थे।
- नानक देव जी एक दार्शनिक, समाज सुधारक, कवि, गृहस्थ, योगी और देशभक्त थे।
- नानक जी जात-पात के खिलाफ थे। उन्होंने समाज से इस बुराई को खत्म करने के लिए लंगर की शुरुआत की। इसमें अमीर-गरीब, छोटे-बड़े और सभी जाति के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं।
- नानक देव जी ने ‘निर्गुण उपासना’ का प्रचार प्रसार किया। वे मूर्ति पूजा के खिलाफ थे। उनका कहना था कि ईश्वर एक है, वह सर्वशक्तिमान है, वही सत्य है।
- नानक देव जी ने समाज को जागरूक करने के लिए काफी यात्राएं की। उन्होंने हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, काशी, गया, पटना, असम, बीकानेर, पुष्कर तीर्थ, दिल्ली, पानीपत, कुरुक्षेत्र, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, सोमनाथ, द्वारका, नर्मदातट, मुल्तान, लाहौर आदि स्थानों का भ्रमण किया।
- गुरू नानक देव जी का देहावसान करतारपुर में 1539 में हुआ। स्वर्गगमन से पूर्व उन्होंने बाबा लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। वे गुरू अंगददेव के नाम से प्रसिद्ध हुए।
गुरु नानक देव जी के उपदेश
- ईश्वर एक है, सदैव उस ईश्वर की उपासना करो।
- ईश्वर हर जगह व्याप्त हैं, वह सभी प्राणियों में हैं। उन पर विश्वास रखना चाहिए।
- ईश्वर की आराधना करने वाले व्यक्ति को कभी भी किसी से डरना नहीं चाहिए।
- आप ईमानदारी से मेहनत करें और अपना भरण-पोषण करें।
- किसी भी व्यक्ति को बुरा कार्य नहीं करना चाहिए और न ही इसके बारे में कभी सोचना चाहिए।
- अपने किए गए गलतियों के लिए ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए। साथ ही व्यक्ति को सदैव प्रसन्न रहना चाहिए।
- इस संसार में सभी स्त्री और पुरुष एक समान हैं, उनमें कोई भी कम या ज्यादा नहीं है।
- आपने अपने जीवन में मेहनत और ईमानदारी से जो कुछ भी अर्जित किया है, उसमें से कुछ हिस्सा गरीबों को दान कर देना चाहिए। उनकी मदद करनी चाहिए।
- नानक देव जी ने कहा है कि किसी भी इंसान को लोभ, अहंकार और ईर्ष्या नहीं करना चाहिए।
- केवल स्वयं के विषय में सोचकर वस्तुओं और धन का संचय करना बुरी बात है।