पटना के सदाकत आश्रम में कैसे बीते थे डॉ. राजेंद्र प्रसाद के आखिरी दिन जानें

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नई दिल्ली: देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र (Rajendra) प्रसाद (Prasad) की आज पुण्यतिथि है। उनका निधन पटना में 28 फरवरी 1963 में हो गया था। इससे पहले वो बीमार थे।बीमारी की ही वजह से उन्होंने दो कार्यकाल के बाद राष्ट्र्पति पद से हटने का फैसला किया था। उनके आखिरी दिन पटना के सदाकत आश्रम में सादगी के बीच बीते।

राजेंद्र प्रसाद 26 जनवरी 1950 को देश के पहले राष्ट्रपति बने थे। उसके बाद 1952 में उन्होंने राष्ट्रपति के रूप में अपना पहला कार्यकाल शुरू किया। 1957 में उन्होंने फिर राष्ट्रपति पद के तौर पर दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव जीता।

दूसरे कार्यकाल के दौरान ही उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा। लिहाजा उन्होंने इस कार्यकाल के पद से हटने का फैसला किया. वह राष्ट्रपति भवन को विदा कहकर पटना आ गये।

वो हमेशा अपनी सादगी और ऊंचे आदर्शों के लिए जाने गए. राष्ट्रपति बनने के बाद भी उनका जीवन, भोजन और वस्त्र सादगी भरे और बहुत कम खर्च वाले थे।वह ज्यादातर पुराने कपड़े ही इस्तेमाल करते थे। वह विशुद्ध शाकाहारी थे। उन्हें तब राष्ट्रपति के रूप में 10000 रुपए मासिक वेतन और 2500 रुपए मासिक भत्ता मिलता था। ये उन्हें बहुत ज्यादा लगता था।

केवल 2500 रुपए का वेतन लेते थे

उन्होंने स्वैच्छा से अपने वेतन को घटाकर महज 2500 रुपए कर लिया. जब वह 12 मई 1962 को राष्ट्रपति पद से हट रहे थे तब उससे एक दिन पहले उन्होंने दिल्ली में विदाई भाषण दिया। उन्होंने कहा, राष्ट्रपति भवन से अब मैं पटना के अपने छोटे से आश्रम में चला जाऊंगा।

कुछ लोग कहते हैं कि इससे मेरी विनम्रता और महत्ता जाहिर होती है लेकिन मेरा ऐसा कोई दावा नहीं है। सदाकत आश्रम में मेरे जाने का मतलब यही होगा कि अब से मैं नई जगह से अपना कर्तव्य पालन करूंगा।

आखिरी दिन पटना विवि में भाषण देने जाने वाले थे

28 फरवरी 1963 को रात 10 बजकर 10 मिनट पर उन्होंने आखिरी सांस ली। वह 70 वर्ष के थे। उसी दिन वह पटना विश्वविद्यालय में दीक्षांत भाषण देने जाने वाले थे। वह भाषण फिर उनकी गैरमौजूदगी में पढ़ा गया। ये देश के नाम उनकी आखिरी वसीयत थी। इसमें अध्यापकों, छात्रों और समाज के लिए उनके कीमती सुझाव थे। नई तालीम के प्रति उनका मजबूत विश्वास था।

पटना के सदाकत आश्रम में रहने लगे

उन्होंने कहा, अगर स्वास्थ्य ने साथ दिया तो वह अपना शेष जीवन देश की सेवा में लगाएंगे। 12 मई 1962 को अवकाश ग्रहण करने के बाद 14 मई से वह सदाकत आश्रम की अपनी पुरानी कुटी में रहने चले गए। हालांकि इसके बाद उनका स्वास्थ्य बिगड़ता रहा। लिहाजा वह पटना से ही तमाम कार्यक्रम और लोगों के संपर्क में बने रहते थे।

आजादी आंदोलन से पहले जाने माने वकील के तौर पर पहचान

अगर वह चाहते तो एक शीर्ष वकील के रूप में खासा कमा सकते थे। वह वर्ष 1910 के आसपास पटना के जाने माने वकील बन चुके थे। अपनी सत्यनिष्ठा, कर्तव्यपरायणता और वकालत के अपने अकूत ज्ञान के लिए विख्यात थे।

ताजिंदगी साधारण तरीके से जिए

आजादी में आने से पहले राजेंद्र प्रसाद बिहार के शीर्ष वकीलों में थे। पटना में बड़ा घर था। नौकर चाकर थे। उस जमाने में उनकी फीस भी कम नहीं थी। लेकिन गांधीजी के अनुरोध पर आजादी की लड़ाई में कूदे और फिर ताजिंदगी साधारण तरीके से जीते रहे।

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