नई दिल्ली : दिल्ली (Delhi) के ऐतिहासिक रामलीला मैदान (Ramlila Maidan) में पहली बार चुनावी मंच नहीं सजेगा। किसी भी राजनीतिक दल ने इसे रैली के लिए बुक नहीं किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि जेपी की हुंकार से लेकर अन्ना आंदोलन तक का गवाह रहे इस मैदान की अचानक अनदेखी क्यों? दरअसल, सियासी दल रैलियों की बजाय सभाएं, रोड शो और सोशल मीडिया प्रचार पर जोर दे रहे हैं। इनके जरिये कम समय में ज्यादा लोगों से सीधा संवाद हो जाता है। वहीं, रामलीला मैदान (Ramlila Maidan) में बड़ी रैली के लिए महीनों तैयारी करनी पड़ती है।
छोटी-छोटी सभाओं, रोड शो पर जोर
- तीनों प्रमुख दल भाजपा, कांग्रेस और ‘आप’ का जोर विधानसभा चुनाव में गली-मोहल्लों में छोटी-छोटी जनसभाओं पर ज्यादा है।
- भाजपा चुनाव के लिए पांच हजार से अधिक छोटी नुक्कड़ जनसभाएं कर रही है। केंद्रीय मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय नेता दिल्ली के 13 हजार से अधिक बूथों पर कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद स्थापित करेंगे।
- ‘आप’ की ओर से सभी 70 विधानसभा क्षेत्रों में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के रोड शो का आयोजन किया जा रहा है। पार्टी मोहल्ला सभाओं के जरिये जनता तक पहुंचने की कोशिश कर रही है।
- कांग्रेस पार्टी नुक्कड़ नाटकों के जरिए जनता से संवाद स्थापित करने में जुटी हैं। कांग्रेस नेता दिल्ली में 15 वर्ष तक रहे कांग्रेस शासन के दिनों की याद दिल्ली की जनता को दिलाने में जुटे हैं।
ऐसे होती है बुकिंग
रामलीला मैदान (Ramlila Maidan) में जनसभा या रैली करने के लिए उत्तरी दिल्ली नगर निगम के उद्यान विभाग के पास 50 हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से पर्ची कटवानी पड़ती है। रैली या जनसभा के आयोजकों को बुकिंग की पर्ची कटवाने के बाद दिल्ली ट्रैफिक पुलिस और दिल्ली पुलिस (Delhi Police) से भी अनापत्ति पत्र लेना होता है।