र्वजों यानी पितरों को श्रद्धा के तर्पण का पक्ष है पितृपक्ष, जनिए श्राद्ध तिथि और इसका महत्व

guru-ji-kumaran-file-image.jpg

Pitru Paksha : आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या पंद्रह दिन पितृपक्ष के नाम से विख्यात है. इन पंद्रह दिनों में लोग अपने पूर्वजों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं।

पिता-माता आदि पारिवारिक सदस्यों की मृत्यु के पश्चात्‌ उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किये जानेवाले कर्म को श्राद्ध कहते हैं. श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ अर्थात जो श्रद्धा से किया जाये, वह श्राद्ध है।

भावार्थ है प्रेत और पित्त्तर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाये, वह श्राद्ध है. आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या के पंद्रह दिन पितृपक्ष कहलाता है।

डॉ गुरुजी कुमारन स्वामी से जाने ने बताया कि इन 15 दिनों में पितरों का श्राद्ध किया जाता है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है. इस बार 2 सितंबर से 17 सितंबर तक पितृपक्ष रहेगा।

2 सितंबर को पूर्णिमा तिथि सुबह 09 बजकर 38 मिनट से 3 सितंबर की सुबह 10 बजकर 51 मिनट तक रहेगा. पूर्णिमा श्राद्ध को श्राद्धि पूर्णिमा तथा प्रोष्ठपदी पूर्णिमा श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।

पूर्णिमा श्राद्ध भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि को किया जाता है. यह ध्यान रहे कि पूर्णिमा तिथि पर मृत्यू प्राप्त करने वालों के लिए महालय श्राद्ध की अमावस्या श्राद्ध तिथि पर किया जाता है।

भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध पितृ पक्ष से एक दिन पहले पड़ता है, किन्तु यह पितृ पक्ष का भाग नहीं है. सामान्यतः पितृ पक्ष, भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध के अगले दिन से आरम्भ होता है।

साल 2020 में कब से आरंभ है पितृ पक्ष

हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष भाद्रपद महीने की पूर्णिमा तिथि से लेकर आश्विन माह की अमावस्या तिथि तक पितृपक्ष रहता है। ऐसे में इस बार श्राद्ध पक्ष का आरंभ भाद्रपद पूर्णिमा 2 सितंबर से हो रहा है। वहीं 17 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या रहेगी। इसी दिन पितृ पक्ष का अंतिम दिन होगा।

श्राद्ध में 5 मुख्य कर्म अवश्य करने चाहिए-

1. तर्पण- दूध, तिल, कुशा, पुष्प, सुगंधित जल पित्तरों को नित्य अर्पित करें।

2. पिंडदान- चावल या जौ के पिंडदान करके जरूरतमंदों को भोजन दें।

3. वस्त्रदानः निर्धनों को वस्त्र दें।

4. दक्षिणाः भोजन करवाने के बाद दक्षिणा दें और चरण स्पर्श भी जरूर करें।

5. पूर्वजों के नाम पर शिक्षा दान, रक्त दान, भोजन दान, वृक्षारोपण या चिकित्सा संबंधी दान जैसे सामाजिक कृत्य अवश्य करने चाहिए।

श्राद्ध विधि

श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्व दिया जाता है. साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है. श्राद्ध में तिल और कुश का सर्वाधिक महत्व होता है।

श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए. श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है।

श्राद्ध सारिणी

2 सितंबर- पितृ पक्ष श्राद्ध आरंभ- पूर्णिमा- बुधवार

3 सितंबर- प्रतिपदा का श्राद्ध

4 सितंबर- द्वितीया का श्राद्ध

5 सितंबर- तृतीया का श्राद्ध

6 सितंबर- चतुर्थी का श्राद्ध

7 सितंबर- पंचमी का श्राद्ध

8 सितंबर-षष्ठी का श्राद्ध

9 सितंबर- सप्तमी का श्राद्ध

10 सितंबर- अष्टमी का श्राद्ध

11 सितंबर- नवमी का श्राद्ध

12 सितंबर- दशमी का श्राद्ध

13 सितंबर- एकादशी का श्राद्ध

14 सितंबर- द्वादशी का श्राद्ध

15 सितंबर- त्रयोदशी का श्राद्ध

16 सितंबर- चतुर्दशी का श्राद्ध

17 सितंबर- सर्वपितृ श्राद्ध

Share this post

PinIt

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    scroll to top