किसान आंदोलन स्थल पर उमड़ी महिलाओं की भीड़

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नई दिल्ली : किसान आंदोलन में सोमवार को महिला किसान दिवस मनाया गया। इस दौरान नोएडा-दिल्ली (Noida-Delhi) बॉर्डर (Border) पर पहली बार घूंघट में बड़ी संख्या में महिलाएं पहुंचीं। 52 दिन से चल रहे इस आंदोलन में सोमवार को पहला ऐसा दिन था।

जिसमें सबसे अधिक संख्या में महिलाओं ने भाग लिया। महिलाओं ने ना सिर्फ आंदोलन का नेतृत्व किया, बल्कि घूंघट के पीछे से ही अपने इरादे भी जता दिए। कहाकि वह किसी भी हालत में हार नहीं मानने वाली और कोई उनके हौंसले को नहीं तोड़ सकता।

आंदोलन में शामिल होने आयी महिलाएं भले ही घर की चारदीवारी लांघ कर आंदोलन स्थल पर पहुंची थी, लेकिन उन्होंने अपनी परंपराओं को भी पूरी तरह से निभाया। इन महिलाओं ने चेहरे पर घूंघट कर रखा था और सिर पर काली पट्टी बांध रखी थी। महिलाएं अपने साथ ढोलक भी लायी थी और ढोलक की थाप पर वह गीत गाकर भी किसानों की दुर्दशा को बयां कर रही थी और अपनी आवाज बुलंद कर रही थी।

नोएडा में चिल्ला बॉर्डर पर भाकियू भानू गुट और दलित प्रेरणा स्थल पर भाकियू लोकशक्ति के नेतृत्व में किसानों का आंदोलन चल रहा है। दलित प्रेरणा स्थल पर भाकियू लोकशक्ति के राष्ट्रीय अध्यक्ष मास्टर श्यौराज सिंह की पत्नी कुमरमति ने आंदोलन की कमान संभाली तो चिल्ला बॉर्डर पर भाकियू भानू की पश्चिमी उत्तर प्रदेश की महिला प्रकोष्ठ की उपाध्यक्ष रेखा शर्मा ने नेतृत्व किया।

दोनों ही स्थानों पर बड़ी संख्या में आयी महिलाओं ने कहा कि वह खेतों में भी बराबर का काम करती हैं और आंदोलन में भी उनकी भूमिका बराबर की है, 26 जनवरी को दिल्ली की परेड में उनकी भागीदारी सबसे खास रहेगी।

उनके बिना खेतीबाड़ी की कल्पना भी मुश्किल है। घर में चूल्हे चौके से लेकर पशुओं को पालने से लेकर फसल की कटाई, निराई, गुड़ाई, धुलाई और चुगाई में हमें कोई नजरंदाज नहीं कर सकता। महिलाओं ने नोएडा में मानव श्रृखंला भी बनायी।

पलवल में भी महिलाओं का जमावड़ा

पलवल में किसान आंदोलन स्थल पर महिलाओं का जमावड़ा दिखाई दिया। सोमवार सुबह से ही पलवल के अटौंहा स्थित धरनास्थल पर महिलाएं पहुंचनी शुरू हो गई थीं। कड़ाके की ठंड के बावजूद काफी संख्या में महिलाओं ने धरनास्थल  पर पहुंचकर किसान आंदोलन को अपना पूर्ण समर्थन दिया।

इस मौके पर मंच संचालन भी महिलाओं ने किया। किसान महिला नेताओं चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि या तो समय रहते सरकार कृषि के तीनों कानूनों को रद्द कर दें, अन्यथा आने वाले दिनों में सरकार को इसका खामियाजा झेलने को तैयार रहना होगा।

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