नई दिल्ली: हिंदी सिनेमा के दिग्गज कलाकार दिलीप कुमार का 98 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। वह पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। उनका निधन मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में हुआ है। उनका करियर शानदार रहा है और एक्टिंग के मोर्चे पर वह बॉलीवुड के दिग्गज कलाकार रहे हैं। लेकिन यह सफर बहुत ही अनोखे ढंग से शुरू हुआ। बात 1944 की है। उन दिनों बॉम्बे टॉकीज स्टूडियो का अपना जलवा हुआ करता था। लेकिन बॉम्बे टॉकीज को एक नए हीरो की तलाश थी।
Veteran actor Dilip Kumar passes away at the age of 98, says Dr Jalil Parkar, the pulmonologist treating the actor at Mumbai’s PD Hinduja Hospital
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— ANI (@ANI) July 7, 2021
स्टूडियो की मालकिन देविका रानी थीं। इसी सब जद्दोजहद के बीच एक दिन वे बाजार में खरीदारी के लिए गईं। उनका इरादा खरीदारी का ही था लेकिन दिमाग में अपने नए हीरो की तलाश की चाहत भी बसी हुई थी। खरीदारी के दौरान वे एक फलों की दुकान पर गईं। उस दुकान पर मौजूद युवा उनकी पारखी नजरों को भा गया।इसे किस्मत कहें या इत्तेफाक वह युवा सिर्फ इसलिए दुकान में था कि उसके पिता बीमार थे। देविका को उसका चेहरा ऐक्टिंग के माकूल लगा और आंखों में कशिश दिखी जो किसी सुपरस्टार के लिए जरूरी चीजें थीं। देविका ने उन्हें अपना विजिटिंग कार्ड दिया और कहा कि कभी स्टूडियो में आकर मिलना।
युसूफ खान के दिलीप कुमार बनने का सफर
ये युवा जल्द ही स्टूडियो पहुंच गया। उसे कुछ टेस्ट के बाद अप्रेंटिस पोस्ट के लिए रख लिया गया। इसके बाद देविका ने अपने इस हीरो पर फोकस किया। अब वे उन्हें ऐसा टच देना चाहती थीं कि वे सिल्वर स्क्रीन पर छा जाए। इस तरह युसूफ खान बॉम्बे टॉकीज का हिस्सा बन चुका था। युसूफ का दिलीप कुमार बनने तक का सफर बड़ा रोचक था। लेखक अशोक राज ने अपनी किताब में ‘हीरो’ में लिखा है कि हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार भगवती चरण वर्मा ने उन्होंने दिलीप नाम दिया था जबकि माना जाता है कि कुमार उन्हें उस समय के उभरते सितारे अशोक कुमार से मिला था। हालांकि फिल्म लेखक बनी रूबेन कहते हैं कि देविका रानी उनके लिए तीन नाम लेकर आई थीं, दिलीप कुमार, वासुदेव और जहांगीर।