पूरे साल रहेगी नेपाली सैनिकों की मौजूदगी
बताया जा रहा है कि नेपाल फिलहाल 9 करोड़ की लागत से छावनी बनाने की योजना बना रहा है. छावनी बनने के बाद उच्च हिमालयी इलाके में नेपाली सैनिकों की साल भर मौजूदगी रहेगी. असल में लिपुलेख सड़क का उद्घाटन होने के बाद नेपाल ने कड़ा विरोध जताया है.
सुगौली संधि के बाद से दोनों इलाके भारत के पास
नेपाल सरकार का दावा है कि कालापानी और लिपुलेख उसका हिस्सा है और भारत ने नेपाल के भू-भाग में जबरन सड़क का निर्माण किया है. जबकि सच्चाई ये है कि ये दोनों इलाके सुगौली संधि के बाद से ही भारत के पास है. जिस कालापानी पर नेपाल दावा जता रहा है, वहां 1962 के बाद से ही भारतीय जवानों की तैनाती है. यही नहीं, 1962 में हुए बंदोबस्त के मुताबिक कालापानी गर्व्यांग गांव का तोक है, जिसके अभिलेख भी धारचूला राजस्व विभाग के पास मौजूद हैं. लिपुलेख सड़क को लेकर नेपाल की बौखलाहट के पीछे चीनी साजिश भी नजर आ रही है.
सेना प्रमुख ने कहा- किसी और का हो सकता है इशारा
भारतीय सेना प्रमुख एम एम नरवणे भी कह चुके हैं कि ये संभव है कि नेपाल किसी अन्य के इशारे पर लिपुलेख दर्रे को जोड़ने वाली सड़क पर आपत्ति जाता रहा है. पिथौरागढ़ से लगे बॉर्डर पर नेपाल की अतिसक्रियता के बावजूद भारतीय सुरक्षा एजेंसियां पहले की ही तरह अपने काम पर लगी हैं. नेपाल बॉर्डर पर तैनात एसएसबी की 11 वीं बटालियन के सेनानायक महेंद्र प्रताप का कहना है कि नेपाल अपनी सीमाओं के भीतर काम कर रहा है. नेपाल बॉर्डर पर एसएसबी पहले की ही तरह सुरक्षा में जुटी है.