- चीन ने पूर्वी लद्दाख में संघर्ष के शुरुआती दिनों में तेजी से सैनिक जुटा लिए
- दशकों से एलएसी के पास बनाए आधारभूत ढांचों के कारण चीन को झटपट सैनिक जुटाने में सहूलियत मिली
- चीन ने अपने सैनिकों को गारा ढोने वाले ट्रकों में भी लादकर भारत से सटी सीमा पर पहुंचाया
- 1967 के बाद से अब तक चीन और भारत के सैनिकों ने एक-दूसरे पर गोली नहीं चलाई
भारतीय सीमा में भी अतिक्रमण
कीचढ़ ढोने वाले ट्रकों में भी आए चीनी सैनिक
सैनिकों की संख्या बढ़ाने में चीन की जल्दबाजी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसने सैनिकों को उन ट्रकों में भी भेज दिया जिनका इस्तेमाल एयरफील्ड के विस्तार के लिए गारे की ढुलाई में किया जाता है। सूत्रों ने कहा कि वेस्टर्न हाइवे प्रॉजेक्ट समेत पिछले कई दशकों में तैयार बुनियादी ढांचा परियोजनाओं ने चीन को तेजी से अपने सैनिकों की ढुलाई में मदद पहुंचाई।
भारत से तीन गुना है रक्षा बजट
दबाव की रणनीति में माहिर है चीन
सूत्रों के मुताबिक, चूंकि विभिन्न समझौतों के तहत एलएसी पर दोनों पक्ष एक-दूसरे पर गोलियां नहीं चलाने को बाध्य हैं, ऐसे में सैनिकों की संख्या के जरिए ही एक-दूसरे को छोटा दिखाने की कोशिश होती रहती है। जिस पक्ष के पास जितनी तेजी से सैनिकों को बॉर्डर पर लाने की क्षमता है, वो इस खेल में दूसरे पर बढ़त हासिल कर लेगा। चीन इस माइंड गेम में भारत को आगे नहीं बढ़ने देना चाहता है। यही कारण है कि वह सीमाई इलाकों में भारत के आधारभूत ढांचों के निर्माण में दखलंदाजी करता रहता है। पूर्वी लद्दाख में एलएसी के पास भारत की तरफ से हो रहे निर्माण कार्यों पर वह लगातार आपत्ति जताता रहा है, लेकिन इन आपत्तियों को तवज्जो नहीं मिलता देख वह दबाव की रणनीति अपनाने लगा। इस रणनीति के तहत चीन ने इलाके में विवादित स्थानों पर अपने सैनिक तैनात कर दिए।
चीन की बौखलाहट की असली वजह
सूत्रों ने कहा कि दौलत बेग ओल्डी को जोड़ने वाली नई सड़क और आसपास के इलाकों में आम नागरिकों और सेना की आवाजाही बढ़ने से चीन की बौखलाहट बढ़ गई है। दूसरे सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तानी नेता जो बयान दे रहे हैं, उसका पूर्वी लद्दाख में चीन की कार्रवाइयों से कोई लेनादेना नहीं है। क्या तनाव की मौजूदा स्थिति और बिगड़ सकती है क्योंकि चीन ने भारत से अपने विद्यार्थियों एवं अन्य नागरिकों को वापस बुलाना शुरू कर दिया है? इस सवाल पर सूत्रों का कहना है कि भारत से अपने नागरिकों को बुलाने का लद्दाख में जारी संघर्ष से कोई मतलब नहीं है। उन्होंने कहा कि कोरोना संकट में चीनी नागरिक अपनी सरकार से खुद को भारत से निकालने की गुहार लगा रहे थे जिसे चीनी सरकार ने अब तवज्जो दी।
शांति में विश्वास लेकिन संप्रभुता से समझौता तनिक भी नहीं
सूत्रों ने कहा कि चीन के दबाव के आगे अपनी संप्रभुता और सुरक्षा से किसी भी तरह का समझौता करने का कोई सवाल ही नहीं है। भारत शांति का पक्षधर है, लेकिन अगर सीमा की रक्षा की बात होगी तो किसी भी हद तक बढ़ने में कोई हिचक नहीं होगी।
सीमा प्रबंधन की जड़ में ये चार समझौते
भारत और चीन के बीच कम-से-कम चार समझौतों के जरिए सीमा प्रबंधन का तंत्र विकसित हुआ जो अब भी कारगर है। इन समझौतों में 1993 और 1996 के समझौते, 2005 से विश्वास बहाली के उपाय (CBM) और फिर 2013 के सीमा समझौता शामिल हैं। इन समझौतों ने ऐसा तंत्र दिया है जिसके तहत चीन और भारत सीमा विवाद को बातचीत से सुलझाते रहे हैं और 1967 के बाद से अब तक कोई खूनी झड़प नहीं हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग का वुहान सम्मेलन के साथ-साथ दोनों देशों अन्य राष्ट्राध्यक्षों के बीच शिखर वार्ताओं के केंद्र में भी यही समझौते हैं।