डॉ गुरुजी कुमारन स्वामी से जाने छठ व्रत एक आम पर्व नही है

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यह एक तपस्या की तरह कठिन महापर्व सूर्य के आराधना का है। यह प्राय: महि‍लाओं द्वारा सन्तान के लिए किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं।

इस छठ महापर्व(Chhath Puja) के विधि-विधान में पवित्रता, शुद्धता और श्रधा का बहुत महत्व दिया जाता है यह महापर्व हर वर्ष का​र्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होती है।

चार दिनों तक चलने यह महापर्व प्रारंभ दो दिन पूर्व 18 नवंबर 2020 चतुर्थी तिथि को नहाय खाय से शुरू होगा , फिर पंचमी 19 नवंबर 2020 को खरना होगा।

कैसे करें छठ का व्रत

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को नहाय खाय से शुरू होने वाले व्रत के दौरान छठव्रती स्नान एवं पूजा पाठ के बाद शुद्ध अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी ग्रहण करते हैं।

पंचमी को दिन भर ‘खरना का व्रत’ रखकर व्रती शाम को गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का सेवन करते हैं। इसके बाद शुरू होता है 36 घंटे का ‘निर्जला व्रत’। छठ महापर्व के तीसरे दिन शाम को व्रती डूबते सूर्य की आराधना करते हैं और अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देते हैं।

पूजा के चौथे दिन व्रतधारी उदीयमान सूर्य को दूसरा अर्घ्य समर्पित करते हैं। इसके पश्चात 36 घंटे का व्रत समाप्त होता है और व्रती अन्न जल ग्रहण करते हैं। इस अर्घ्य में फल और नारियल के अतिरिक्त ठेकुआ का काफी महत्व होता है।

नहाय खाय की तैयारी के दौरान महिलाएं गेहूं धोने और सुखाने तथा बाजारों में चूड़ी, लहठी, आलता और अन्य सुहाग की वस्तुएं खरीदने में व्यस्त रहती हैं। छठ पूजा के अंतिम दिन भक्तगण उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद कच्चा दूध व प्रसाद खाकर व्रत का पारण करते हैं।

उसके बाद षष्ठी तिथि 20 नवंबर 2020 को छठ पूजा(Chhath Puja) होती है, जिसमें सूर्य देव को शाम का अर्घ्य अर्पित किया जाता है। इसके बाद अगले दिन सप्तमी 21 नवंबर को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं और फिर पारण करके व्रत को पूरा किया जाता है।

19 नवंबर 2020 को छठ का खरना है इस दिन व्रती शुद्ध मन से सूर्य देव और छठ मां की पूजा करके गुड़ की खीर का भोग लगाते हैं. खीर पकाने के लिए साठी के चावल का प्रयोग किया जाता है.

भोजन काफी शुद्ध तरीके से बनाया जाता है. खरना के दिन जो प्रसाद बनता है, उसे नए चूल्हे पर बनाया जाता है. व्रती खीर अपने हाथों से पकाते हैं. शाम को प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है.

20 नवंबर को दें डूबते सूर्य को अर्घ्य-

सुबह को सूर्य पूजा और छठी मैया की पूजा करेंगे,छठ के सामान की धुलाई और साफ़ सफाई करेंगे,साफ़ करके डलिया में से सूप में ठेकुआ, हलवा, फल फूल
चन्दन रखना है. सबसे पहले सूप लेकर पानी में उतरा जाता है.

21 नवंबर मंगलवार शाम को नदी तालाब में खड़े होकर उगते

सूर्य को अर्घ्य देंगे, इसे संझिया अर्घ्य बोलते हैं,फिर सूर्य पूजा के बाद फल प्रसाद डालिया टोकरी में रख लेंगे,दूसरे दिन सुबह सूर्योदय पर सूर्य को अर्घ्य देने
के लिए फिर धो लें.

राम-सीता से भी जुड़ी है छठ महापर्व….

पौराणिक कथाओं के बताया गया है की जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया।

पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया।

जिसे सीता जी ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। इस प्रकार अन्य पौराणिक कथा भी प्रचलित है यह छठ महापर्व सनातन काल से ही चला आ रहा है और निश्चित रूप से छठ महापर्व का महत्व, इतिहास और विज्ञान पुख्ता और बिलकुल सच है |

छठ महापर्व का विज्ञान से रिश्ता…

छठ पर्व के पीछे पौराणिक महत्व के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी छिपा हुआ है, जो कई लोग नहीं जानते। जी हां, छठ पर्व की परंपरा में बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा हुआ है।

दरअसल षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगोलीय अवसर है। उस समय सूर्य की पराबैंगनी[Ultra Violet] किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं।

उसके संभावित कुप्रभावों से मानव की यथासंभव रक्षा करने का सामर्थ्‍य इस परंपरा में है। छठ पर्व के पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैंगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा संभव है।इस प्रकार छठ महापर्व का महत्व, इतिहास और विज्ञान है |

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