नई दिल्ली : आज चंद्रशेखर (chandrashekhar) आजाद (azad) की पुण्यतिथि (death-anniversary) है। महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर (chandrashekhar) आजाद (azad) 27 फरवरी 1931 को शहीद हुए थे। उनकी पुण्यतिथि (death-anniversary) पर हम आपको उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें बताने जा रहे हैं।
1- महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर (chandrashekhar) आजाद (azad) 27 फरवरी 1931 को शहीद हुए थे जबकि देश के इस महान सपूत का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ था। आजाद के पिता पंडित सीताराम तिवारी अकाल के समय उत्तर प्रदेश के अपने पैतृक निवास बदरका को छोड़कर पहले कुछ दिनों मध्य प्रदेश के अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते रहे, फिर जाकर भाबरा गांव बस गए। यहीं चन्द्रशेखर आजाद का बचपन बीता।
2– जब आजाद को अंग्रेजी सरकार ने असहयोग आंदोलन के समय गिरफ्तार किया और अदालत में उनसे उनका परिचय पूछा गया तो उन्होंने कहा- मेरा नाम आजाद और पिता का नाम स्वतंत्रता और मेरा पता जेल है।
3– जब गांधीजी द्वारा साल 1922 में चौरीचौरा कांड में 21 पुलिस कांस्टेबल और 1 सब इंस्पेक्टर के मारे जाने से दुखी होकर असहयोग आंदोलन को अचानक बंद कर दिया गया। तब आजाद की विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गए।
4– रामप्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद ने साथी क्रांतिकारियों के साथ मिलकर ब्रिटिश खजाना लूटने और हथियार खरीदने के लिए ऐतिहासिक काकोरी ट्रेन डकैती को अंजाम दिया।
5- लाला लाजपत राय की मृत्यु के बाद से ही उसका बदला लेने के लिए आजाद, राजगुरू और भगत सिंह ने योजना बनाई। 17 दिसंबर, 1928 को आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने शाम के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया और ज्यों ही जे.पी. सांडर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकले, तो राजगुरु ने पहली गोली दाग दी। फिर भगत सिंह ने आगे बढ़कर 4-6 गोलियां दागी। जब सांडर्स के अंगरक्षक ने उनका पीछा किया, तो चंद्रशेखर (chandrashekhar) आजाद ने अपनी गोली से उसे भी समाप्त कर दिया। इसके बाद लाहौर में जगह-जगह पोस्टर लगे कि लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है।
6– इसके बाद एक दिन उन्हें इलाहाबाद के एल्फ्रेड पार्क में उन्हें उनके मित्र सुखदेव राज ने बुलाया। वो बात कर ही रहे थे कि पुलिस ने उन्हें घेर लिया और गोलियां दागनी शुरू कर दी। दोनों ओर से गोलीबारी हुई। चंद्रशेखर (chandrashekhar) आजाद (azad) ने अपने जीवन में ये कसम खा रखी थी कि वो कभी भी जिंदा पुलिस के हाथ नहीं आएंगे। इसलिए उन्होंने खुद को गोली मार ली।