Shaheed Diwas 2020 Bhagat Singh: भारत को आजादी दिलाने में कई लोगों की जान गई। उन सभी शहीदों की याद में हम हर साल शहीद दिवस मनाते हैं। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने तो खुशी-खुशी मौत को गले लगा लिया। वे बेखौफ और चेहरे पर एक मुस्कान लिए फांसी के फंदे से लटक गए। कहा जाता है कि 23 मार्च 1931 को फांसी के फंदे से लटकने के समय उनके मुंह से उफ्फ तक की आवाज नहीं निकली। लेकिन फांसी के एक दिन पहले जेल के सभी कैदियों के साथ साथ अधिकारियों के आंखों में भी आंसू आ गए थे। भाग सकते थे भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव असेंबली में बन फेंकने के बाद भाग सकते थे। अगर वो भाग जाते, तो फांसी की सजा से बच जाते।
लेकिन उन्होंने अंग्रेजों को खुली चेतावनी दी और बम फेंकने के बाद अपने स्थान पर खड़े रहे। जिसके बाद उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई। भगत सिंह ने क्या लिखा था आखिरी खत में भगत सिंह ने अपने आखिरी खत में लिखा था कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए। लेकिन मेरे जीवित रहने की बस इतनी सी शर्त है कि मैं कैद न रहूं। किसी का गुलाम न रहूं। उन्होंने लिखा था कि मुझे हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतीक माना जाने लगा है। मेरा नाम अब बहुत ऊंचा उठ गया है।
इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में मैं इससे ऊंचा नहीं हो सकता था। उन्होंने लिखा था कि मेरे हंसते-हंसते फांसी चढ़ने का लक्ष्य बस इतना है कि माताएं अपने बच्चों में भी भगत सिंह को देखना चाहेंगी। इससे अंग्रेजों के खिलाफ खड़े होने वाले लोगों की संख्या इतनी बढ़ जाएगी कि अंग्रेजों का इन्हें रोकना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने लिखा था कि आजकल मुझे खुद पर गर्व महसूस होता है कि देश के लिए मैं अपने प्राण न्योछावर करने जा रहा हूं। अब तो मुझे अपने आखिरी क्षण की प्रतीक्षा है। मैं कामना करता हूं कि ये और नजदीक हो जाए। क्या थी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की आखिरी ख्वाहिश बताया जाता है कि जब उन तीनों को नहलाकर और नए कपड़े पहनाकर जल्लाद के सामने पेश किया गया। तब उनसे उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई। जिसके जवाब में तीनों ने एक सुर में कहा था कि हम एक-दूसरे से गले मिलना चाहते हैं।