राजनाथ सिंह बोले- अफगानिस्तान में बदलाव भारत के लिये चुनौती

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नई दिल्ली: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रविवार को कहा कि अफगानिस्तान में बदल रहे सत्ता समीकरण भारत के लिए चुनौती है जिसे लेकर उसे अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ा और क्वाड पहल ने इसे रेखांकित किया है।

सशस्त्र बलों में संयुक्त कमान समेत ढांचागत सुधारों पर उन्होंने कहा कि रक्षा मंत्रालय एकीकृत युद्ध समूहों (आईबीजी) के गठन पर गंभीरतापूर्वक विचार कर रहा है क्योंकि युद्ध के दौरान तत्काल निर्णय लेना एक महत्वपूर्ण पहलू है। वह यहां के निकट वेलिंगटन में डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज (डीएसएससी) के 77वें स्टाफ कोर्स के छात्र अधिकारियों को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा, ‘‘अफगानिस्तान में बदलता समीकरण हमारे लिए चुनौती है…इन हालातों ने हमारे देश को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने को मजबूर किया। हम अपनी रणनीति बदल रहे हैं और क्वाड का गठन इस रणनीति को रेखांकित करता है।’’

रणनीति पर विचार करने को बाध्य किया

राजनाथ सिंह ने कहा, “बदलते समीकरणों ने सभी देशों को उनकी रणनीति पर विचार करने को बाध्य किया। इसी पृष्ठभूमि में क्वाड (चतुर्भुजीय सुरक्षा वार्ता) समूह गठित किया गया जिसमें भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका शामिल हैं.” सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भौगोलिक सीमाओं के साथ-साथ साइबर युद्ध और जैविक हमलों से जोड़ने की धारणा बदल गई है तथा वैश्विक शक्तियों का गठजोड़ और पुन: गठजोड़ पहले से बदल रही सुरक्षा चुनौतियों में जुड़ गया है।

भारत बदलती सुरक्षा परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिये तैयार है

राजनाथ सिंह ने कहा कि सरकार द्वारा किये गए सुधारों के कारण भारत बदलती सुरक्षा परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिये तैयार है। रक्षा मंत्री ने कहा कि सशस्त्र बलों को हर समय पूरी तरह सुसज्जित व तैयार रहने की जरूरत है। उन्होंने कहा, “हम अपनी सेना को मजबूत करना जारी रखेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि बदलती वैश्विक सुरक्षा स्थितियों से उत्पन्न होने वाली किसी भी चुनौती से निपटने के लिए हम एक कदम आगे हों।”

अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी की समय सीमा से दो सप्ताह पहले ही तालिबान ने कुछ दिनों पूर्व देश के लगभग सभी बड़े शहरों पर कब्जा कर लिया। संयुक्त कमान बनाने के फैसले को सिंह ने अहम ढांचागत सुधार करार दिया जो तेजी से प्रगति कर रहा है। उन्होंने कहा, “एकीकृत थियेटर कमान के गठन के साथ ही सशस्त्र बलों को संयुक्त रूप से लड़ने के लिए एकीकृत परिचालन अवधारणाओं तथा सिद्धांतों को विकसित करना होगा। मुझे लगता है कि डीएसएससी इस मुद्दे पर मंथन के लिए एक अच्छा मंच साबित हो सकता है।”

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