पदम् पुरस्कार 2020: अपने काम से खास बन गए आम आदमी का प्रतिनिधित्व करते यह लोग

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भारत सरकार ने पूर्व केंद्रीय मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस, अरुण जेटली और सुषमा स्वराज को मरणोपरांत देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण तथा पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर परिकर को मरणोपरांत पद्म भूषण से नवाजने का एलान किया है।  इनके अलावा गणतंत्र दिवस पर भारत सरकार ने लंगर बाबा, चाचा शरीफ, अंकल मूसा, अक्षर संत, सुंदरबन के सुजान और हाथी के साथी जैसे नामों से पहचाने जाने वाली उन 21 शख्सियतों को भी पद्मश्री से नवाजने का एलान किया है, जो हमारे गणतंत्र में आम आदमी का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन अपने काम से खास बन गए हैं। 

इन ‘खास काम वाली आम’ शख्सियतों में से एक जगदीश लाल आहूजा 15 सालों से रोज दो हजार लोगों को मुफ्त भोजन करवाते हैं, तो 21 हजार लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कर चुके मोहम्मद शरीफ भी हैं। भोपाल गैस कांड के बाद 2300 महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने वाले अब्दुल जब्बार को मरणोपरांत सम्मान से नवाजा गया है, तो कश्मीर में दिव्यांग बच्चों के लिए काम करने वाले जावेद अहमद टाक और जगंलों की एनसाइक्लोपीडिया मानी जाने वाली तुलसी गौड़ा को भी इस प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान का हकदार पाया गया है।

1. भोपाल गैस पीड़ितों के जब्बार भाई —-अब्दुल जब्बार (63) मध्यप्रदेश के भोपाल के थे। इन्हें वॉइस ऑफ भोपाल के नाम से जाना जाता है। भोपाल गैस त्रासदी के बाद महिलाओं और पीड़ितों की आवाज को उठाते रहे। भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के बैनर तले दो हजार से ज्यादा महिलाओं आत्मनिर्भर बनाया। हैंडपंप फिटर के तौर पर करियर शुरू करने वाले जब्बार भाई ने गैस पीड़ितों के लिए 35 वर्षों तक संघर्ष किया। इन्होंने गैस त्रासदी में मारे गए लोगों की विधवाओं को प्रशिक्षण दिया और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया। भोपाल गैस त्रासदी में इन्होंने अपना परिवार खो दिया था। फेफड़ों में तकलीफ के साथ 50 फीसदी आंखों की रोशनी चली गई थी। पिछले साल इनका निधन हुआ।

2. जगदीश लाल आहूजा : रोजाना सैकड़ों लोगों भरते पेट—पंजाब के रहने वाले चौरासी वर्षीय जगदीश लाल आहूजा को सामाजिक कार्य के लिए पद्मश्री सम्मानित किया जाएगा। इन्हें ‘लंगर बाबा’ के नाम से जाना जाता है। साल 1980 से ये लगातार गरीब लोगों को मुफ्त में भोजन मुहैया करा रहे हैं। साल 2000 से पीजीआई के बाहर  गरीब बीमार व उनके तीमारदारों रोजाना करीब 2000 से ज्यादा लोगों को ये भोजन के साथ ही उन्हें वित्तीय मदद के साथ ही कपड़े आदि भी देते हैं हैं। आपका जन्म पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था, लेकिन विभाजन के चलते अपना सब कुछ वहीं छोड़कर खाली हाथ भारत आना पड़ा। लोगों की मदद को आपने जमीन-जायदाद बेच दी।

3. मोहम्मद शरीफ: धर्म-जाति से ऊपर, करते हैं लावारिस शवों का अंतिम संस्कार—चाचा शरीफ के नाम से विख्यात मोहम्मद शरीफ को सामाजिक कार्य के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया जाएगा। उत्तर प्रदेश के रहने वाले 80 वर्षीय मो. शरीफ  फैजाबाद व उसके आसपास मिली लावारिस शवों का दाह-संस्कार करते हैं। पेशे से साइकिल मकैनिक मो.शरीफ पिछले 25 साल के दौरान पच्चीस हजार से ज्यादा लावारिस शवों का दाह संस्कार करा चुके हैं। इस दौरान वह इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि मृतक का आखिरी संस्कार उसके धर्म के अनुरूप हो। हिंदू शव का वो जहां दाह संस्कार करते हैं तो मुस्लिम शव को सुपुर्द ए-खाक की रस्म निभाते हैं।

4. जावेद अहमद टाक : दिव्यांगता नहीं होने दी हावी—मन में अगर कुछ करने का जज्बा हो तो बड़ी से बड़ी बाधा भी छोटी मालूम पड़ती है। समाज सेवा के लिए पद्मश्री से सम्मानित होने वाले कश्मीर के अनंतनाग जिले के बिजबहाड़ा के  46 वर्षीय ‘अनंतनाग के अपने’ जावेद अहमद टाक 1997 में आतंकी गोली के चलते दिव्यांग हो गए और तब से व्हीलचेयर पर हैं। लेकिन उन्होंने अपनी दिव्यांगता को ही अपनी हिम्मत बना लिया। वे पिछले दो दशक से अपनी ह्यूमेनिटी वेलफेयर आर्गेनाइजेशन कश्मीर एवं जैबा आपा स्कूल के जरिए कश्मीर के विशेष बच्चों को मुख्य धारा में शामिल करने के  लिए काम करते हैं। करीब 100 ऐसे विशेष बच्चों को वे निशुल्क शिक्षा व अन्य मदद दे रहे हैं। इसके साथ ही अनंतनाग और पुलवामा के 40 से अधिक गांवों के लिए बच्चों के लिए परियोजनाओं का कार्यान्वयन किया 

5. तुलसी गौडा: आने वाली पीढ़ी को दे रही वनस्पति का ज्ञान—एनसाइक्लोपिया ऑफ जंगल के रूप में जाने जानी वाली कर्नाटक की 72वर्षीय तुलसी गौडा को सामाजिक कल्याण (पर्यावरण) के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया जाएगा। किसी औपचारिक शिक्षा के बावजूद आपको जंगल की वनस्पति का गहरा ज्ञान है। पिछड़ी जाति हलाक्की और गरीबी में जीवन बीतने के बावजूद आपने पिछले 60 सालों के दौरान हजारों की संख्या में पेड़ों लगाने के साथ ही उनकी देखरेख की। आज भी आप पेड़ों की देखभाल करती हैं और अगली पीढ़ी को वनस्पति ज्ञान जानकारी देती हैं। आपे वन विभाग में अस्थायी स्वयंसेवक के तौर पर जुड़ी, लेकिन पर्यावरण के प्रति आपके समर्पण को देखते हुए विभाग ने आपको सदस्य के  तौर पर स्थायी रोजगार की पेशकश की।

6. सत्यनारायण मुंदेयूर: अंकल मूसा ऑफ अरुणाचल—केरल में जन्मे सत्यानायण मुंदेयूर (69 वर्ष) ने अपने गृहराज्य से हजारों किलोमीटर दूर अरुणाचल प्रदेश को अपनी कर्मभूमि बना लिया। आपने मुंबई में राजस्व अधिकारी की सरकारी नौकरी छोड़ 1979 में अरुणाचल के लोहित का रुख किया और यहीं के होकर रह गए। पिछले चार दशकों से आप अरुणाचल प्रदेश के सुदूर इलाकों में शिक्षा एवं पठन संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं। इसके लिए कई सुदूर इलाकों में 13 बंबूसा पुस्तकालय की स्थापना की, इनमें अमर चित्रकथा से लेकर रस्किन बॉन्ड जैसे लेखकों की दस हजार से ज्यादा पुस्तकें  हैं। आपने होम लाइब्रेरी मूवमेंट भी शुरू किया। इसमें स्वयंसेवकों के जरिये बच्चों को निशुल्क पुस्तकों का वितरण किया जाता है। आपने अरुणाचल की लोक विरासत के प्रचार के लिए बच्चों के लिए मलयालम में वहां के लोक विरासत से संबंधी पुस्तक का भी लेखन किया है।

7. एस रामकृष्णन (अमर सेवानी)—तमिलनाडु के 65 वर्षीय दिव्यांग सामाजिक कार्यकर्ता एस रामकृष्णन को पद्मश्री दिया जाएगा। इन्हें लोग अमर सेवानी नाम से भी जानते हैं। 20 वर्ष की उम्र में नौसेना में भर्ती के दौरान एक हादसे में गर्दन के नीचे इनका पूरा शरीर लकवाग्रस्त हो गया था, लेकिन देश में दिव्यांगों को नया जीवन देने वालों में इनका नाम सबसे पहले लिया जाता है। इन्होंने देश के सबसे बड़े दिव्यांग पुनर्वास केंद्र अमर सेवा संगम की स्थापना की जहां बीते चार दशक में 800 से अधिक गांवों के 14 हजार दिव्यांगों का पुनर्वास हुआ। यहां दिव्यांगों को रहने के लिए घर, दवाईयां, शिक्षा और रोजगार परक प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके अलावा ये सेरेब्रल पैलेसी से पीड़ित बच्चों के लिए डे केयर भी चलाते हैं।

8. मुन्ना मास्टर (भाईचारे के भजन)—61 वर्षीय मुन्ना मास्टर के राम-कृष्ण भजन सुनकर लोगों का मन पवित्र हो जाता है। जयपुर के बगरू में मुस्लिम परिवार में जन्मे मुन्ना मास्टर को इस बार पद्मश्री से नवाजा जा रहा है। इनकी पीढ़ियां भजन गाती थीं सो इन्होंने भी उसी परंपरा को आगे बढ़ाया। मुन्ना मास्टर ने  गाय और भगवान कृष्ण पर खुद भजन भी लिखे हैं और जयपुर में इनके भजन संग्रह की किताब श्री श्याम सुरभि वंदना बहुत प्रचलित है। भारतीय संस्कृति के विविध रंगों को अपने भीतर समेटे मुन्ना मास्टर पांच वक्त की नमाज अदा करते हैं, भजन गाते हैं, संस्कृत भी जानते हैं और गौसेवा भी करते हैं।

9 .योगी ऐरन (हिमालय मित्र)—देहरादून में हेल्पिंग हैंड नाम से एक अस्पताल चलाने वाले 81 वर्षीय योगी एरन ने अपनी जिंदगी के 35 वर्ष जलने वालों के उपचार और सेवा में लगा दिये। इनको पद्मश्री से सम्मानित किया जा रहा है। इनके अस्पताल में हर वर्ष करीब 500 मरीजों को मुफ्त इलाज दिया जाता है। इनकी विशेषता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि गंभीर रूप से जले हुए मरीजों को कई बार सरकारी अस्पताल से इनके हेल्पिंग हैंड में रेफर किया जाता है। उन्होंने लगातार 13 वर्ष तक लगातार सुदूर गांवों में 14-14 दिन के कैंप लगाए। योगी ऐरन खुद किराये के मकान में रहते हैं। 1983 में अमेरिका से लौटकर उन्होंने अपने घर के हॉल में एक डिस्पेंसरी से शुरूआत की थी।

10. सुंदरम वर्मा (संवहनीयता के शिखर)—ड्राईलैंड एग्रोफोरेस्ट्री नाम की जन संरक्षण तकनीक के जरिये राजस्थान के शेखावटी क्षेत्र में 50 हजार से अधिक पेड़ उगाने वाले सुंदरम वर्मा को इस वर्ष पद्मश्री दिया जाएगा। संवहनीयता के शिखर नाम से ख्यात सुंदरम ने छह नर्सरी भी खोली हैं। जहां से करीब डेढ़ लाख पौधे किसानों को बांटे गए। सुंदरम की तकनीक में सबसे पहले जमीन को इस तरह बराबर किया जाता है जिससे बारिश का पानी बर्बाद न हो। वहीं जमीन की बार बार खोदाई की जाती है इसके बाद इनमें पौधों को गहरे में रोपा जाता है और प्रत्येक पौधे में एक लीटर पानी डाला जाता है। पौधा इसमें बढ़ जाता है। अपनी इस तकनीक से उन्होंने सौ फीसदी सफलता मिली है।

11. सीड मदर सोमा पोपेरे—राहीभाई सोमा पोपेरे (56) को सीड मदर के नाम से जाना जाता है। पोपेरे महाराष्ट्र के अहमदनगर की अनपढ़ आदिवासी किसान हैं जिन्हें सीएसआईआई ने आदिवासी क्षेत्रों में बेहतरीन काम के लिए सीड मदर की उपाधि दी थी। इन्होंने 50 एकड़ भूमि को संरक्षित कर उस पर चावल और सब्जियों की खेती शुरू की। खेतों में जल संरक्षण पर काम किया और भूमि को उपजाऊ बनाया। इनकी मेहनत का ही नतीजा है कि फसलों की पैदावार में 30 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई।

12. बंजर में हरियाली फैला रहे हिम्मताराम—राजस्थान के रहने वाले हिम्मताराम भंभू (63) किसान और पर्यावरणविद के तौर पर प्रकृति की रक्षा के लिए लंबे समय से काम कर रहे हैं। इन्होंने जंगलों के बचाव और पौधारोपण पर बड़े स्तर पर काम किया। नागपुर, जोधपुर, जैसलमेर, बिकानेर, सीकर, अजमेर के लोगों वनों के संरक्षण के लिए जागरूक किया ताकि नई पीढ़ी प्रकृति के खूबसूरत नजारे को देख सके। एक हजार से अधिक पक्षियों और जानवरों की देखभाल करते हैं और रोज 20 किलोग्राम अनाज खिलाते हैं। खासतौर पर मोर, चिंकारा और अन्य प्रजातियों की देखभाल करते हैं। जानवरों की तस्करी करने वालों के खिलाफ लड़ते हैं।

13. पांच सदी पुरानी विरासत आगे रही मूझिकल्ल—केरल की रहने वाली मूझिकाल पनकाजाक्षी (70) पारंपरिक कला नोकुविद्या को संरक्षित करने का काम कर रही हैं जो अभी लुप्त होने की कगार पर है। आठ साल की उम्र में इन्होंने केरल के बाद भारत और दुनिया में इसका मंचन किया था। नोकुविद्या पवाकाल्ली विशेष तरह नाट्य कला है जिसे पिछली पांच सदी से पनकाजाक्षी का परिवार आगे बढ़ा रहा है। 70 साल की उम्र में भी इस बेहद कठिन कला को बड़ी सहूलियत से कर लेती हैं।  

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