नई दिल्ली: नागरिकता कानून बनने के बाद से देश के कई हिस्सों में इसका लगातार विरोध हो रहा है। मगर पाकिस्तान से आए देश के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे धार्मिक अल्पसंख्यकों की बहुत बड़ी आबादी नागरिकता कानून में मोदी सरकार के फैसले से बहुत खुश है।
छह साल पहले धार्मिक भेदभाव की वजह से इन लोगो का पाकिस्तान में रहना मुश्किल हो गया था। उन्हें हार कर पाकिस्तान सिंध हैदराबाद में अपनी जन्मभूमि को छोड़ना पड़ा और वह 2013 में अपने साथ परिवार को लेकर भारत आ गए। इन लोगों ने पड़ोसी देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने का साहसिक फैसला लेने वाले पीएम नरेंद्र मोदी को पाकिस्तान के हिन्दू शरणार्थियों के लिए “भगवान का अवतार” करार दिया।
कौन है ये लोग ?
सिविल लाइंस से कुछ किलोमीटर दूर, यमुना नदी के किनारे मजनू का टीला लगभग 700 पाकिस्तानी-हिंदू शरणार्थियों के लिए एक सुरक्षित स्थान बन गया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के समक्ष दायर एक रिपोर्ट के अनुसार, “2011 से 2014 तक तीर्थ यात्रा वीजा पर भारत आए लगभग 700 पाकिस्तानी हिंदू नागरिकों के लगभग 120 परिवार झुग्गियों और अर्ध-स्थायी संरचनाओं में रह रहे हैं।”
क्यों छोड़ा इन लोगो ने पाकिस्तान ?
- वहां स्कूलों में इस्लामी शिक्षा दी जाती है इन लोगों का कहना है की पाकिस्तान में ये लोग इस्लामी शिक्षा और इस्लामी धर्म की मान्यताओं को मान ने के लिए बाधित थे। इन्हे अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं थी वहां।
- ज़मीनो पर कब्ज़ा कर बना दिया मज़दूर भारत के विभाजन के बाद से ही इन्हे ज़मीनों पर कब्ज़े हो जाने के मामलों का सामना करना पड़ रहा है। इलाके में धार्मिक कट्टरपंथियों का दबदबा होने के कारण पाकिस्तान सरकार में भी इनकी कोई सुनवाई नहीं हो पाती थी। इन सभी हालातों के चलते ही इनकी आर्थिक हालत बद से बदतर होती चली गई।
- महिलाएँ और बच्चे नहीं थे सुरक्षित सबसे बड़ा और अहम मुद्दा जो इन्हे सीमा पार तक ले आया है, जिसके कारण यह लोग आज भी वापस पाकिस्तान नहीं जाना चाहते वह है सुरक्षा का मुद्दा। इनका कहना है की उस मुल्क में इनके घर की महिलाएँ और बच्चे सुरक्षित नहीं थे। लम्बे समय से धार्मिक उत्पीड़न झेलते झेलते इन लोगो के मन में पाकिस्तान और इस्लामिक धर्म के प्रति दहशत पैदा हो गई है।
- मूलभूत अधिकारों से भी रहे वंचित पाकिस्तान में इनके साथ दोयम दर्जे का सलूक होता है। मुशर्रफ़ के शासनकाल में वोटिंग तक बंद हो गई थी। हालांकि बाद में ये अधिकार वापस दे दिया गया मगर बार बार धार्मिक आज़ादी पर हमलों का सिलसिला नहीं थमा।
भारत में क्यों लेनी पड़ी शरण ?
छह साल पहले हरिद्वार तीर्थ करने का धार्मिक वीसा लेकर भारत आ गए और तबसे यहीं दिल्ली में मजनू का टीला में रिफ्यूज़ी कैंप में रह रहे हैं। मज़दूरी करके परिवार का गुजारा करते है। भारत को हिन्दू राष्ट्र मानते हैं इसलिए ऐसा मानते है की यहां इनके धर्म और इनके अस्तित्व की रक्षा होगी। कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है ही भले ही यहां भूखे पेट सोना पड़े, कम सहूलत में जीना पड़े मगर भारत में उन्हें सुरक्षित महसूस होता है।
शरणार्थियों, विशेष रूप से पड़ोसी देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों की चिंता सुरक्षा से जुड़ी हुई अधिक लगती है। वह कहते हैं की हम घुसपैठिये नहीं हैं। हम तो बाक़ायदा वीसा लेकर भारत आएं हैं। लेकिन यहां आने पर दोनों देशों के बीच का अंतर हमे मालूम हुआ। एक ऐसे जीवन के लिए जहाँ उनकी आवाज़ को दबा दिया गया, जिसमें वोट या भूमि स्वामित्व का अधिकार नहीं है। वह वहाँ नहीं रहना चाहते। अब नागरिकता संशोधन कानून 2019 के आ जाने के बाद इन पाकिस्तानी हिन्दू रेफ्यूजी लोगो को काफी उम्मीद मिली है।
क्या है नागरिकता संशोधन कानून 2019?
नागरिकता संशोधन कानून 2019 के द्वारा पड़ोसी देशों से भागकर भारत आए धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता दी जाएगी। ये नागरिकता पाकिस्तान, अफग़ानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध जैन और फारसी धर्म के लोगो को दी जाएगी। नागरिकता उन्हें मिलेगी जो एक से छह साल तक भारत में रहे हो। 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए लोगो को नागरिकता दी जाएगी। अन्य धर्म के लोगों को नागरिकता के लिए भारत में 11 साल रहना ज़रूरी है।
भविष्य में क्या है उम्मीद ?
नागरिकता संशोधन कानून 2019 आने के बाद इन लोगो में ख़ुशी की लहर साफ़ देखी जा सकती है। ख़ुशी का आलम यहां तक देखा जा सकता है की CAA कानून बनने के दिन पैदा हुई एक लड़की का नाम नागरिकता ही रख दिया गया। ध्यान देने वाली बात ये है की अब भविष्य में इनकी क्या स्थिति होगी। नागरिकता मिल जाने से इनकी अपेक्षाएँ अब भारत से और भारत की सरकार से और अधिक बढ़ जाएँगी। वर्तमान स्तिथि तो ये है इनकी मदद करने कई स्वयंसेवी संस्थाएँ आगे आई हैं जिनमें निःस्वार्थ कदम का नाम विशेष रूप से अहम रहा है। हालत काफी जटिल है क्योंकि यह सभी लगभग निरक्षर हैं और ऐसे में इन्हें रोज़गार से लेकर अन्य सभी सुविधाएँ उपलब्ध करवाने में बड़ी दिक्कत आ सकती है। अंत में हल तो यही होगा की सरकार और स्थानीय संस्थाएं मिल कर अपना सहयोग दें तभी समाज प्रगति कर सकता है।