कृषि कानूनों और किसान आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज

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नई दिल्ली : दिल्ली (Delhi) की सीमाओं पर पिछले करीब सवा महीने से डटे प्रदर्शनकारी किसानों के आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में नए कृषि कानूनों और किसानों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर आज यानी मंगलवार को अपना आदेश सुना सकता है।

हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि सुप्रीम (Supreme) कोर्ट (Court) ने इस संबंध में सभी याचिकाओं की सुनवाई पूरी की है या नहीं, मगर उम्मीद की जा रही है कोर्ट आज फैसला सुना सकता है।

संभव है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार औक किसानों के बीच जारी इस गतिरोध को दूर करने के इरादे से देश के किसी पूर्व प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति गठित कर दे।प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने सोमवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान संकेत दिया था।

कि वह कृषि कानूनों और किसानों के आन्दोलन से संबंधित मुद्दों पर अलग अलग हिस्सों में आदेश पारित कर सकती है। इस संबंध में बाद में न्यायालय की वेबसाइट पर यह सूचना अपलोड की गई है।

इस सूचना में कहा गया है, ‘इन मामलों को आज यानी 12 जनवरी को आदेश के लिए सूचीबद्ध किया जाए। पीठ ने सोमवार को तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के साथ ही किसानों के आन्दोलन के दौरान नागरिकों के निर्बाध रूप से आवागमन के अधिकार के मुद्दे उठाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की थी। न्यायालय ने किसानों के साथ बातचीत का अभी तक कोई हल नहीं निकलने पर केन्द्र को आड़े हाथ लिया था और सारी स्थिति पर घोर निराशा व्यक्त की थी।

सुप्रीम (Supreme) कोर्ट (Court) ने कहा था कि किसानों के साथ उसकी बातचीत के तरीके से वह बहुत निराश है। इस विवाद का समाधान खोजने के लिए वह एक समिति गठित करेगा। इस बारे में आदेश मंगलवार को दिया जाएगा।

मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की पीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए यहां तक संकेत दिया कि यदि सरकार इन कानूनों का अमल स्थगित नहीं करती है तो वह उन पर रोक लगा सकती है।

इसके साथ ही न्यायालय ने यह भी संकेत दिया था कि वह किसी पूर्व प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति गठित कर सकता है जिसमें देश की सभी किसान यूनियनों के प्र्रतिनिधियों को भी शामिल किया जा सकता है। न्यायालय ने इस गतिरोध का सर्वमान्य समाधान खोजने के लिये केन्द्र सरकार को और समय देने से इंकार करते हुये कहा था कि पहले ही उसे काफी वक्त दिया जा चुका है।

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