हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा निर्भया के दोषियों को जल्द फांसी देने की मांग पर

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नई दिल्ली : निर्भया (nirbhaya) के दोषियों को जल्द-से-जल्द फांसी पर लटकाने की मांग वाली केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस (Delhi Police) की याचिका पर सुनवाई के बाद दिल्ली (Delhi) हाई कोर्ट (High Court) ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस (Delhi Police) ने हाई कोर्ट (High Court) में याचिका दाखिल कर पटियाला हाउस कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने की मांग की है जिसमें निर्भया (nirbhaya) के दोषियों के डेथ वॉरंट पर अमल पर रोक लगा दी गई है। सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल (SG ) तुषार मेहता ने दोषियों पर कानून के दुरुपयोग का आरोप लगाया।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि दोषी कानून के तहत मिली सजा के अमल पर विलंब करने की सुनियोजित चाल चल रहे हैं। मेहता ने जस्टिस सुरेश कैत से कहा कि दोषी पवन गुप्ता का क्यूरेटिव या दया याचिका दायर नहीं करना सुनियोजित है। मेहता ने कहा कि निर्भया मामले के दोषी न्यायिक मशीनरी से खेल रहे हैं और देश के धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं। सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट से कहा, ‘कानून के तहत मिली सजा के अमल पर विलंब करने की एक सुनियोजित चाल है।’ जस्टिस सुरेश कैत ने केंद्र और दिल्ली सरकार की संयुक्त अर्जी पर तीन घंटे की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

अधिवक्ता एपी सिंह ने दोषियों अक्षय सिंह (31), विनय शर्मा (26) और पवन (25)की ओर से दलीलें रखीं। वह मामले के दोषियों की फांसी की सजा की तामील पर रोक को दरकिनार करने के अनुरोध वाली केंद्र की अर्जी के खिलाफ दलीलें रख रहे थे। मुकेश की ओर से वकील रेबेका जॉन ने भी अपने तर्क पेश किए। जॉन ने दलील दी कि चूंकि उन्हें एक ही आदेश के जरिए मौत की सजा सुनाई गई है, इसलिए उन्हें एक साथ फांसी देनी होगी और उनकी सजा का अलग-अलग क्रियान्वयन नहीं किया जा सकता।

जॉन ने कहा, ‘मैं स्वीकार करती हूं कि मैंने प्रक्रिया विलंबित की, मैं बहुत खराब व्यक्ति हूं, मैंने एक घोर अपराध किया है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती, इसके बावजूद मैं संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) की हकदार हूं।’ मेहता ने दलील दी कि दोषी पवन गुप्ता का क्यूरेटिव या दया याचिका दायर नहीं करने का कदम सुनियोजित है। कानून अधिकारी ने कहा कि निचली अदालत द्वारा नियमों की व्याख्या के तहत यदि पवन गुप्ता दया याचिका दायर नहीं करने का फैसला करता है तो किसी को भी फांसी नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा, ‘दोषियों द्वारा प्रक्रिया को विलंबित करने की सुनियोजित चाल चली जा रही है जिससे निचली अदालत द्वारा कानून के तहत सुनायी गई उस सजा के अमल पर देर करायी जा सके जिसकी दिल्ली उच्च न्यायालय ने पुष्टि की थी और जिसे उच्चतम न्यायालय ने भी बरकरार रखा था।’

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