- आईटीबीपी के क्वारेंटाइन कैंप में उन संदिग्ध मरीजों को रखा गया था, जो कोरोना से प्रभावित देशों से आए
- कैंप में रखे गए लोगों के साथ बच्चे भी हैं, ऐसे में उनका खयाल रखने की भी पूरी कोशिश की जा रही है
- यहां आने वाले लोगों का व्यवहार शुरू में अग्रेसिव होता है, बाद में वे घुल-मिल जाते हैं
छावला के क्वारंटाइन सेंटर में 14 दिन का गुजारने के बाद चीन से आई जुआन ने बताया कि यहां आकर उसे शुरुआती दिनों में कुछ मुश्किलें हुईं। दोस्त नहीं थे, छोटी बच्ची डर रही थी, वो खेल नहीं पा रही थी, बार-बार रोती थी, लेकिन इसके बावजूद यह दिन चीन में बिताए दिनों से काफी बेहतर थे। जुआन ने बताया कि हाल ही में इटली से भी एक ग्रुप को लाया गया जिनमें कुछ कोरोना वायरस के पॉजिटिव केस थे। यहां खौफ का माहौल बन गया था। लोग अपनी खिड़कियां बंद करके रहने लगे थे लेकिन इटली के इस ग्रुप को जल्द ही यहां से शिफ्ट कर दिया गया, जिसके बाद माहौल फिर से अच्छा होने लगा।
जुआन के पति अभिषेक ने बताया कि चीन में सुपर मार्केट खुले थे लेकिन डर इतना अधिक था कि हम घर में ही कैद हो कर रहे। घर में जो खाना था हम बस वही खाकर काम चला रहे थे। कुछ दिनों तक तो हमने पूरे दिन में बस मुट्ठी भर खाना खाया ताकि हम जिंदा रह सकें। हमने चीन में करीब 20 दिन इस तरह कांटे हैं। 8 साल की हमारी बेटी तान्या खेलने के लिए परेशान थी। रात में उठकर रोती थी। उसे स्कूल याद आ रहा था। यह चीजें हमें और अधिक परेशान कर रहीं थीं लेकिन आईटीपीबी कैंप में आने के बाद सब बदल गया।
‘एंबेसी बनी फरिश्ता, फिर फ्लाइट में लगा काफी डर’
हैदराबाद के मनमीत सिंह बस छह दिनों के लिए परिवार के साथ चीन गए थे। इसी दौरान लॉकडाउन हो गया। खाने-पीने की कमी होने लगी। हमें लगा स्थितियां सुधर जाएंगी लेकिन इसके बाद स्थिति खराब होती चली गई। हम खुद को कोरोना वायरस से सुरक्षित रखना चाहते थे, इसलिए हमने लोगों से संपर्क करना बंद कर दिया। मनमीत के अनुसार, मेरे साथ मेरा पांच साल का बेटा और पत्नी भी थी। इस बीच हम लोगों की मदद के लिए बिजिंग की इंडियन एंबेसी फरिश्ता बनकर आई। एंबेसी की स्नेहा झा ने हमारी काफी मदद की।