चैत्र नवरात्र: प्रतिपदा से आरंभ होने वाला यह नवरात्र इस बार कई महासंयोग लेकर आ रहा है

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चैत्र नवरात्र: मां दुर्गा की उपासना का विशेष संयोग बुधवार से बन रहा है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होने वाला नवरात्र इस बार कई महा संयोग लेकर आ रहा है जिसे ज्योतिष विद्वान काफी सिद्धिकारक बता रहे हैं। मां का आगमन नाव पर हो रहा है जो समृद्धि दायक है जबकि विदाई हाथी पर होगी जो अति वृस्ट का योग बना रहा है। नवरात्रि में मां के आगमन और विदाई का काफी महत्व है, क्योंकि इसी आधार पर फल मिलता है।

रेवती नक्षत्र में नवरात्रि का शुभारंभ
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य पंडित राकेश झा ने बताया कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा दिन बुधवार को चैती नवरात्र रेवती नक्षत्र एवं ब्रह्म योग में शुरू होकर तीन अप्रैल दिन शुक्रवारको विजया दशमी के साथ संपन्न होगा। इस नवरात्र में माता अपनों भक्तो को दर्शन देने के लिए नाव पर आ रही है I माता के इस आगमन से श्रद्धालुओं को मनचाहा वरदान और सिद्धि की प्राप्ति होगी। इसके साथ ही माता की विदाई गज यानि हाथी पर हो पर होगी I हाथी पर माता के गमन से अति वृष्टि के योग बनते है। इससे ये प्रतीति हो रहा है कि सूबे में आगामी साल में खूब बारिश होगी। भक्त इस पूरे नवरात्र माता की कृपा पाने के लिए दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा, बीज मंत्र का जाप, भगवती पुराण आदि का पाठ करेंगे। चैत्र नवरात्रि में मां भगवती के सभी नौ रूपों की उपासना की जाएगी। रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने चैत्र नवरात्र में देवी दुर्गा की उपासना के बाद रावण का वध करके विजय हासिल किया था।

ऐसे बन रहा संयोग
ज्योतिष विद्वानों का कहना है कि बुधवार से शुरू होकर 02 अप्रैल तक पूरे 9 दिनों की चैत्र नवरात्रि रहेगी। इस बार चैत्र नवरात्रि पर कई शुभ योग भी बन रहा है।  इस बार चैत्र नवरात्रि में चार सर्वार्थ सिद्धि योग, पांच रवियोग, एक द्विपुष्कर योग, एक गुरु-पुष्य योग  का दुर्लभ संयोग बन रहा है। ऐसे शुभ संयोग में नवरात्रि पर देवी उपासना करने से विशेष फल की प्राप्ति होगी। यह नवरात्रि धन और धर्म की वृद्धि के लिए खास होगी I

कलश पूजा से मिलेगी सुख-समृद्धि 
पंडित झा का कहना है कि चैत्र नवरात्र व्रत-पूजा में कलश स्थापन का महत्व अति शुभ फलदायक है, क्योंकि कलश में ही ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, नवग्रहों, सभी नदियों, सागरों-सरोवरों, सातों द्वीपों, षोडश मातृकाओं, चौसठ योगिनियों सहित सभी तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है, इसीलिए विधिपूर्वक कलश पूजन से सभी देवी-देवताओं का पूजन हो जाता है।  कलश स्थापना सही और उचित मुहूर्त में ही करना चाहिए। ऐसा करने से घर में सुख और समृद्धि आती है और परिवार में खुशियां बनी रहती हैं। पंडित राकेश झा का कहना है कि धार्मिक पुस्तक दुर्गा सप्तशती महामारी से बचने के लिए भगवती के विशेष मंत्र एवं स्तुति करे I

कलश स्थापना के शुभ मुहूर्त
तिथि व सूर्योदय के अनुसार:- प्रातः काल 05:57 बजे से दोपहर 04:02 बजे तक
गुली काल मुहूर्त:- सुबह 10:24 बजे से 11:56 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त:- दोपहर 11 :31 बजे से 12 :20 बजे तक

अपनी राशि के अनुसार करें मां की आराधना
मेष : रक्त चंदन, लाल पुष्प और सफेद मिष्ठान्न अर्पण करें।
वृष : पंचमेवा, सुपारी, सफेद चंदन, पुष्प चढ़ाएं।
मिथुन : केला, पुष्प, धूप से पूजा करें।
कर्क : बताशा, चावल, दही का अर्पण करें।
सिंह : तांबे के पात्र में रोली, चंदन, केसर, कर्पूर के साथ आरती करें।
कन्या : फल, पान पत्ता, गंगाजल मां को अर्पित करें।
तुला : दूध, चावल, चुनरी चढ़ाएं और घी के दीपक से आरती करें।
वृश्चिक : लाल फूल, गुड़, चावल और चंदन के साथ पूजा करें।
धनु : हल्दी, केसर, तिल का तेल, पीत पुष्प अर्पित करें।
मकर : सरसों तेल का दीया, पुष्प, चावल, कुमकुम और हलवा मां को अर्पण करें।
कुंभ : पुष्प, कुमकुम, तेल का दीपक और फल अर्पित करें।
मीन : हल्दी, चावल, पीले फूल और केले के साथ पूजन करें।

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