देश के गौरव का प्रतीक ‘तिरंगे’ के बनने के पीछे क्या है कहानी? जानें

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Independence Day :15 अगस्त के दिन देश के प्रधानमंत्री तिरंगा झंडा फहरा कर राष्ट्र के नाम अपना संबोधन देते हैं. देश के नाम इस अहम दिन पर तिरंगा झंडा अपना खास महत्व रखता है.

आज जिस तरह तिरंगा रूप है क्या पहले भी वैसा ही था? हमारे देश के राष्ट्रीय ध्वज के बनने की क्या कहानी रही इसके पीछे एक दिलचस्प इतिहास रहा है. भारत के राष्ट्रीय ध्वज शीर्ष पर केसरिया रंग की क्षैतिज पट्टी होती है, जो बीच में सफेद और गहरे हरे रंग के बराबर अनुपात में बांटी गई है.

ध्वज की चौड़ाई की लंबाई का अनुपात 2:3 है. सफेद पट्टी के केंद्र में एक नीले रंग का च्रक है जिसमें 24 तिल्लियां हैं. इस प्रतीक को सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ से लिया गया है.

15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी से कुछ दिन पहले 22 जुलाई 1947 को आयोजित संविधान सभा की बैठक के दौरान भारत के राष्ट्रीय ध्वज के वर्तमान स्वरूप को अपनाया गया था.

इसके बाद यह 26 जनवरी, 1950 को संप्रभु गणतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया. ध्वज में तीन रंग के होने की वजह से इसे ‘तिरंगा’ भी कहते हैं.

आज हम भारत के राष्ट्रीय झंडे को जिस तरह से देख रहे हैं, शुरुआत में यह ऐसा नहीं था. यह जानना बहुत ही दिलचस्प होगा कि कैसे हमारा राष्ट्रीय ध्वज अपने पहले प्रारूप से कई बदलावों का रास्ता इख्तियार करते हुए अपने वर्तमान स्वरूप में आया है.

इसकी शुरुआत हमारे राष्ट्रीय संघर्ष के दौरान के दौरान हुई थी. भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का जो स्वरूप आज है वह झंडे के विकास की एक लंबी कड़ी के कई पहलुओं से गुजर कर संभव हो पाया. हमारे राष्ट्रीय ध्वज के विकास में कुछ ऐतिहासिक मील के पत्थर हैं जिन्होंने अलग-अलग झंडे को अलग-अलग रंग और पहचान दी.

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