अयोध्या केस: शिया वक्फ बोर्ड ने किया हिंदू पक्ष का समर्थन, CJI बोले- बैठ जाइए

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सुप्रीम कोर्ट में रामजन्म भूमि- बाबरी मस्जिद विवाद पर सुनवाई का आज 16वां दिन है. श्री रामजन्म भूमि पुनरुत्थान समिति के वकील पी.एन. मिश्रा ने शुक्रवार को अदालत में अपनी दलीलें दीं और उसके बाद हिंदू महासभा के वकील हरिशंकर जैन ने अपनी बातें रखीं जिसमें कई ऐतिहासिक तथ्यों का जिक्र किया गया. इस मामले की सुनवाई हफ्ते में पांच दिन चल रही है, अभी तक निर्मोही अखाड़ा, रामलला के वकील अपनी दलील पूरी कर चुके हैं. अदालत में मामले की सुनवाई के दौरान शिया वक्फ बोर्ड के काउंसल ने बहस की अपील की. उन्होंने कहा कि वह हिंदू पक्ष का समर्थन करते हैं और अपनी बात अदालत में रखना चाहते हैं. इस पर चीफ जस्टिस ने उन्हें कहा कि आप बैठ जाइए. गौरतलब है कि शिया वक्फ बोर्ड इस केस में कोई पार्टी नहीं है.

हिंदू महासभा के वकील हरिशंकर जैन ने कोर्ट में कहा कि ये जगह शुरू से हिंदुओं के अधिकार में रही है. आज़ादी के बाद भी हमारे अधिकार भी सीमित क्यों रहें? क्योंकि 1528 से 1885 तक कहीं भी और कभी भी मुसलमानों का यहां कोई दावा नहीं था. वकील ने ब्रिटिश सर्वाईवर मार्टिन के रिसर्च को आगे बढ़ाते हुए उसी हवाले से 1838 में इस जगह का ज़िक्र किया है. उस किताब में भी हिंदू पूजा परिक्रमा की जाती थी, तब किसी मस्जिद का ज़िक्र नहीं था. इसके अलावा ट्रैफन ने भी किसी मस्जिद का ज़िक्र नहीं किया है, हैरत है कि तब के मुस्लिम इतिहासकारों ने भी मस्जिद का ज़िक्र नहीं किया. हरिशंकर जैन बोले कि हिंदुओं के पूजा के अधिकारों को अंग्रेजों ने सीमित कर दिया था. आज़ादी मिलने और संविधान लागू होने के बाद भी जब अनुच्छेद-25 लागू हुआ फिर भी हमें पूजा का पूरा अधिकार नहीं मिला. अनुच्छेद-13 का हवाला देते हुए हरिशंकर जैन ने कहा कि आज़ादी से पहले चूंकि हमारा कब्ज़ा था तो वो बरकरार रहना चाहिए.

हिंदू महासभा के वकील ने अदालत में कहा कि आक्रांताओं ने हमारे धर्मस्थल नष्ट किए और लूटपाट की. इस्लाम के मुताबिक ये लूट उनके लिए माल की गनीमत था, कुरान का हवाला देते हुए वकील ने कहा कि धर्म की आड़ में युद्ध से मिला सामान सेनापति को मिलता था और वो सबको बांटते थे. वकील पीएन मिश्रा ने बताया कि आखिरी बार 16 दिसंबर 1949 को वहां नमाज़ अदा की गई, इसके बाद ही दंगे हुए और प्रशासन ने नमाज़ बंद करा दी. 1934 से 1949 के दौरान मस्जिद वाली इमारत की चाभी मुसलमानों के पास रहती थी लेकिन पुलिस अपने पहरे में जुमा की नमाज़ के लिए खुलवाती थी, सफाई होती और नमाज़ होती. लेकिन इस पर बैरागी साधु शोर मचाते और नमाज़ में खलल पड़ता था, तनाव बढ़ता था. वकील ने कोर्ट में कहा कि 22-23 दिसंबर की रात जुमा के लिए नमाज़ की तैयारी तो हुई लेकिन नमाज़ नहीं हो पाई. पी.एन. मिश्रा ने 1867 में लिखी एक किताब के पन्ने पढ़ते हुए कहा कि सिंधिया के राज में जमींदारों की जमीन लगान ना चुकाने पर जबरन कब्जा की गई. बंगाली अधिकारियों को अवध में बुलाकर अंग्रेजों ने भूमि राजस्व रिकॉर्ड में मनमाने बदलाव करवाए.

इसके अलावा अंग्रेजी राज के दौरान भी पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक विवादित स्थल की चाभियां पुलिस सुरक्षा में रहती थीं. सिर्फ जुमा के रोज़ ही इसे सामूहिक नमाज़ के लिए खोला जाता था. वकील मिश्र ने कहा कि बेंच का कहना है कि पांच सौ साल पुरानी घटना को कैसे तय किया जा सकता है? लेकिन रिकॉर्ड बताते हैं कि 1855 से पहले तो उनका क्लेम भी नहीं था, ना नमाज़ होती थी. 1855 के बाद कई बार पुलिस पहरे में होने वाली जुमे की नमाज़ के दौरान तनाव रहता था. जन्मस्थान के चारों ओर हिंदू आबादी ही थी. और इस वजह से छिटपुट घटनाओं की वजह से तनाव रहता था, फिर 1934 में दंगे होने के बाद वहां कोई नमाज़ नहीं हुई. वकील ने कोर्ट को बताया कि 1949 में जन्मस्थान पर फिर से रामलला की पूजा शुरू हो गई, लेकिन तब से 1961 तक किसी ने पूजा पाठ का कोई विरोध नहीं किया.
अदालत के कहने पर श्री रामजन्म भूमि पुनरुत्थान समिति के वकील पी.एन. मिश्रा भूमि राजस्व के रिकॉर्ड पेश किए. जिला भूमि राजस्व में भी जन्मस्थान का ज़िक्र है, बाद में उनमें जुमा मस्जिद का नाम जोड़ा गया. उन्होंने कहा कि रिकॉर्ड में मूल लिखाई को रगड़कर मिटाया गया है और उस पर लिखा गया है. स्याही और लिखावट भी बदली हुई है. वकील ने अदालत को कहा कि सरकारी भूमि रिकॉर्ड दस्तावेज में अज़हर हुसैन का नाम जोड़कर माफी का ज़िक्र है. 11.50 AM: श्री रामजन्म भूमि पुनरुत्थान समिति के वकील पी.एन. मिश्रा ने अदालत में कहा कि हिंदू सदियों से वहां पूजा करते आ रहे हैं, ऐसे में मुसलमानों का कब्जा वहां पर नहीं रहा. वो इमारत हमारे कब्जे में थे, मुसलमान शासक होने की वजह से वहां पर जबरन नमाज़ की जाती थी. पीएन मिश्रा ने कोर्ट में कहा कि 1856 से पहले वहां कोई नमाज नहीं होती थी, 1934 तक वहां सिर्फ जुमे की नमाज़ होती रही है.

इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या कोई शासक सरकारी या निजी जमीन पर मस्जिद बना सकता है? वकील ने जवाब दिया कि मुगलकाल में ऐसा होता रहा है, लेकिन बादशाह को काज़ी ने जवाब दिया था कि अपनी कमाई से खरीदी ज़मीन पर मस्जिद बनाने के बाद उसके मेंटेनेंस का भी इंतज़ाम करना भी बनाने वाले कि ज़िम्मेदारी होती है. उन्होंने कोर्ट में उदाहरण दिया कि मस्जिद-अल-हरम, मस्जिद-अल-अक्शा का रुख काबा की तरफ नहीं है, बाकी सभी मस्जिदों का रुख काबा की तरफ ही है. वकील मिश्रा ने कहा कि जहां तक जन्म की बात है तो भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम तो उसी स्थान पर पहले प्रकट हुए थे. प्रकट होने का मतलब ये है कि भगवान राम सूक्ष्म रूप से तो वहां सनातन समय से रहे हैं, बस रामनवमी की दोपहर वो प्रकट हुए.

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